GEOGRAPHY

राजस्थान की जलवायु Climate of Rajasthan

राजस्थान की जलवायु एवं ऋतू Climate of Rajasthan 

जलवायु  – किसी भू भाग पर लंबी अवधि के दौरान विभिन्न समयों में विभिन्न वायुमंडलीय दशाओं की औसत अवस्था को उस भू भाग की जलवायु कहते हैं
जलवायु के निर्धारक घटक
  • तापक्रम वायुदाब आर्द्रता वर्षा वायु वेग
  • राज्य का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर में उपोषण कटिबंध में स्थित है केवल डूंगरपुर बांसवाड़ा जिले का कुछ भाग ही उष्णकटिबंध में आता है
राजस्थान की लगभग 90% से अधिक वर्षा ग्रीष्मकालीन दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं से होती हैं। शीतकाल में न्यूनतम वर्षा वह भी पश्चिमी विक्षोभों से प्राप्त होती हैं। राजस्थान में वर्षाकाल अल्पावधि का होता है राजस्थान में मानसून 15 जून से 15 जुलाई के बीच पहुंचता है तथा सितंबर से पुनः लौटना प्रारंभ हो जाता है। अतः इन कुछ महीनों में ही वर्षा प्राप्त कर ली जाती हैं इसके साथ ही कभी-कभी दिसंबर-जनवरी में पश्चिमी विक्षोभ से ‘मावट’ के रूप में वर्षा होती हैं।
राजस्थान को वर्षा की दृष्टि से 3 प्रदेशों में बांटा गया है :-
  1. सामान्य वर्षा के प्रदेश (दक्षिण व दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान),
  2. मध्यम वर्षा के प्रदेश (पूर्वी राजस्थान)
न्यून वर्षा के प्रदेश (पश्चिमी राजस्थान) में विभाजित किया जाता है। 

राजस्थान के जलवायु प्रदेश ( Rajasthan Climate Region )

जलवायु प्रदेश का अर्थ (Meaning of Climatic Region) पृथ्वी तल के वे विस्तृत भू भाग जहां जलवायु तत्वों में समांगता पाई जाती है, उसे जलवायु प्रदेश कहते हैं।
जलवायु प्रदेशों के नाम
  1. शुष्क जलवायु प्रदेश ( Dry climate region )
  2. अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश ( Semi-arid climate region )
  3. उप आर्द्र जलवायु प्रदेश (Sub-humid climate region )
  4. आर्द्र जलवायु प्रदेश ( Humid climate region )
  5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश(Very humid climate region) 

Dry climate region ( शुष्क जलवायु प्रदेश ): –

  • इसमें जैसलमेर (प्रतिनिधि नगर) दक्षिणी गंगानगर , पश्चिमी बीकानेर , हनुमानगढ़ , जोधपुर(फलौदी) आदि स्थान आते है ।
  • इस क्षेत्र की औसत वर्षा 10-20 सेमी. व् तापमान शीतऋतु में 10-17 डिग्री से. एवं ग्रीष्मऋतु में 35 डिग्री से. तक होता है ।
  • इस क्षेत्र में छोटी पत्तियों वाली कंटीली वनस्पति पायी जाती है जिसे मरुदभिद / जिरोफाइट कहते है ।

Semi-arid climate region ( अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश ): –

  • इस क्षेत्र में गंगानगर , बीकानेर (प्रतिनिधि नगर) , बाड़मेर , चूरू , सीकर , झुंझुनू , जोधपुर , पाली , जालौर , नागौर , अजमेर , टोंक , दौसा व जयपुर आदि शामिल हैं ।
  • इस प्रदेश में औसत वर्षा 20-40 सेमी. एवं तापमान ग्रीष्मकाल में 32 डिग्री से. एवं शीतऋतु में 10-16 डिग्री से. तक रहता है ।
  • इस क्षेत्र में स्टेपी प्रकार की वनस्पति व घास के मैदान पाये जाते है ।
  • यहां प्राप्त होने वाले वृक्षों में आक , धोक , बबूल , खींप , जाल , रोहिड़ा , खेजड़ी आदि एवं सेवण व लावण नामक घास पायी जाती है 
  • राजस्थान की सर्वाधिक खारे पानी की झींले इसी क्षेत्र में मिलती है ।

Sub-humid climate region ( उप आर्द्र जलवायु प्रदेश ) : –

  • इसके अंतर्गत जयपुर (प्रतिनिधि) , अजमेर , पाली , जालौर , सिरोही , भीलवाड़ा , टोंक , अलवर आदि जिले आते है ।
  • इस क्षेत्र में औसत वर्षा 40-60 सेमी. एवं तापमान शीतकाल में 12-18 डिग्री से. व ग्रीष्मकाल में 28-32 डिग्री से. तक होता है ।
  • इस क्षेत्र में पर्वतीय वनस्पति एवं पतझड़ वनस्पति पायी जाती है ।जिसमें आम, नीम, आंवला, खेर, बहड़ आदि प्रमुख है ।

Humid climate region ( आर्द्र जलवायु प्रदेश ): –

  • इसके अंतर्गत धौलपुर , सवाई माधोपुर (प्रतिनिधि नगर) , करौली , कोटा , बूंदी , टोंक , चितौड़गढ़ , राजसमन्द व उदयपुर आदि जिले आते है ।
  • इस क्षेत्र में औसत वर्षा 40-80 सेमी. एवं तापमान ग्रीष्मकाल में 32-34 डिग्री से. व शीतकाल में 14-17 डिग्री से. तक होता है ।
  • इस क्षेत्र में सघन पतझड़ वन पाये जाते है , जिनमें आम , बेर , इमली , नीम , बबूल , शहतूत , शीशम , गूगल , जामुन आदि वृक्ष पाये जाते है

Very humid climate region ( अति आर्द्र जलवायु प्रदेश ): –

इस प्रदेश में झालावाड़ (प्रतिनिधि नगर) , कोटा , उदयपुर का दक्षिणी भाग , आबू पर्वत (सिरोही) , डूंगरपुर एवं बांसवाडा आदि क्षेत्र शामिल है ।
इस क्षेत्र में औसत वर्षा 80-150 सेमी. व तापमान ग्रीष्मकाल में 30-38 डिग्री से. व शीतकाल में 14-18 डिग्री से. तक रहता है ।
इस प्रदेश की मुख्य वनस्पति सवाना तुल्य प्रकार की है , जिसमे जामुन , आम , शहतूत , सागवान , शीशम , बांस , महुआ आदि वृक्ष मुख्य रूप से उगाये जाते है ।
  • राजस्थान विषम जलवायु वाला प्रदेश है , परन्तु उदयपुर राज्य का एक मात्र ऐसा जिला है जहाँ की जलवायु सम जलवायु है ।
  • दूसरा सबसे ठंडा स्थान डबोक (उदयपुर) है ।
  • राज्य में भारतीय मौसम विभाग की वेधशाला जयपुर में स्थित है ।
राजस्थान में जून माह में न्यूनतम वायुदाब जैसलमेर जिले में संभावित है राजस्थान को दो भागों में बांटने वाली सम वर्षा रेखा 50 सेंटीमीटर की है राजस्थान में माउंट पश्चिमी विक्षोभ संबंधित है जब पुष्कर की पहाड़ियों में भारी वर्षा होती है तो बाढ़ बालोतरा जाती है 

राज्य की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक ( Factors Affecting Climate )

राज्य की जलवायु को मुख्यत 7 कारक प्रभावित करते है –
1. अक्षाशीय एवं देशांतरीय विस्तार : –
➡ राजस्थान अक्षांशीय एवं देशांतरीय विस्तार के आधार पर शीतोष्ण जलवायु वाला क्षेत्र है ।
➡ परंतु राज्य के दक्षिण अर्थात डूंगरपुर एवं बांसवाडा से कर्क रेखा गुजरती है जिससे यह क्षेत्र उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला क्षेत्र है ।
➡ इस प्रकार राजस्थान का दक्षिणी भाग ” उष्ण कटिबंधीय ” जलवायु वाला क्षेत्र एवं बाकी क्षेत्र ” उपोष्ण कटिबंध ” वाला क्षेत्र है ।
2. समुन्द्र तल से दूरी : –
➡ भारतीय उपमहाद्वीप के आंतरिक भाग में स्थित होने के कारण राज्य की जलवायु पर सामुंद्रिक स्थिति का प्रभाव नही पड़ता है इसी कारण राजस्थान कु जलवायु उपोष्ण जलवायु है ।
3. अरावली पर्वतमाला की स्थिति : –
➡ राज्य में अरावली पर्वत माला का विस्तार दक्षिण – पश्चिम से उत्तर – पूर्व की ओर है जो अरब सागरीय मानसून के समान्तर है । इस कारण राज्य में अधिक वर्षा नही हो पाती है ।
➡ राज्य में वर्षा दक्षिण – पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से होती है । जिससे राज्य में अरावली पर्वत माला के पूर्व में वर्षा अच्छी होती है जबकि पश्चिमी भाग में न्यूनतम वर्षा होती है।
4. धरातलीय स्थिति : –
➡ राजस्थान की धरातलीय ऊंचाई 370 मी. से कम है एवं अरावली पर्वतमाला और दक्षिण – पूर्व क्षेत्र की धरातलीय ऊंचाई 370 मी. से अधिक है ।
5. वनस्पति तत्व : –
➡ राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में न्यूनतम वन पाये जाते हैं इसी कारण यहां की जलवायु शुष्क है , इसके विपरीत अरावली पर्वतीय क्षेत्र एवं दक्षिणी – पूर्वी क्षेत्र में अधिक वन की सघनता वायुमंडलीय दशाओं को प्रभावित करती है ।
6. मृदा की संरचना : –
➡ राज्य के पश्चिमी भाग में रेतीली एवं मोटे कणों वाली मिट्टी पायी जाती है जो दिन में बहुत जल्दी गर्म एवं रात में बहुत जल्दी ठंडी हो जाती है इसलिए जैसलमेर में सर्वाधिक दैनिक तापान्तर पाया जाता है ।
➡ इसके विपरीत पूर्वी एवं दक्षिणी – पूर्वी राज्य में चिकनी दोमट व काली मिट्टी पायी जाती है जिसके कण बहुत हल्के होते है यह मिट्टी बहुत धीरे गर्म व बहुत धीरे ठंडी होती है इसलिए इस क्षेत्र की जलवायु आर्द्र बनी रहती है ।
7. समुन्द्र तल से ऊंचाई : –
➡ जो भाग समुंद्रतल से जितना ऊंचा होगा वहां की जलवायु ठंडी होगी ।

डॉ. ब्लादिमीर कोपेन की जलवायु वर्गीकरण वनस्पति के आधार पर ( Climate classification )

बलादिमीर कोपेन ने राजस्थान की जलवायु को चार जलवायु प्रदेशों में बांटा
1 AW
2 BSHW
3 Bwhw
4 Cwg
1 Aw- या (उष्णकटिबंधीय आद्र जलवायु प्रदेश) – राज्य के दक्षिणी भाग डूंगरपुर और बांसवाडा जिलों के अंतर्गत आते हैं
2-BSHW या (अर्ध शुष्क प्रदेश)- राजस्थान के सर्वाधिक भाग में पाई जाती है राज्य के चूरु नागौर सीकर झुंझुनूं जोधपुर बाड़मेर पाली सिरोही इसके अंतर्गत आते हैं
3-Bwhw ( जलवायु प्रदेश या शुष्क उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश)-  इसके अंतर्गत राज्य के श्री गंगानगर हनुमानगढ़ बीकानेर जैसलमेर जोधपुर जिले का उत्तरी पश्चिम भाग्य के अंतर्गत आता है
4-Cwg प्रदेश (उप आद्र प्रदेश) – अरावली के दक्षिणी पूर्वी जिले इसके अंतर्गत आते हैं

राजस्थान में प्रवेश करने वाली हवाओं के स्थानीय नाम

भभूल्या- इसका शाब्दिक अर्थ है वायु का भंवर मरुस्थल में निम्न वायुदाब की केंद्र के कारण स्थानीय स्तर पर बनने वाले भवंरो को स्थानीय भाषा में भभूल्या कहा जाता है
पश्चिमी विक्षोभ- शीतकाल में पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर चलने वाली भूमध्यसागरीय पवनों को पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है इन्हीं के कारण राजस्थान में मावठ होती है  इन्हीं पवनों क्षोभ मे मंडल में 6 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर जेट स्ट्रीम कहा जाता है  इन पवनों का नाम जेट स्ट्रीम दूसरे विश्वयुद्ध के समय युद्ध विमान बी 32 जेट विमान के आधार पर रखा गया था।
पुरवइया – इसका शाब्दिक अर्थ होता है पूर्व दिशा की और चलनेवाली पवने  राजस्थान में ग्रीष्मकाल के समय पूर्व दिशा से आने वाली बंगाल की खाड़ी के मानसून को पुरवइया पवन कहा जाता है
सिली- इसका शाब्दिक अर्थ होता है ठंडी पवने, शीतकाल के समय राजस्थान में पौष महीने में चलने वाली ठंडी पवनों को सिली कहा जाता है
तुवा- गर्म पवने, पश्चिमी राजस्थान मे चलने वाली पवनो को तुवा या तवा कहते है
झाला- प. राजस्थान मे पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण जो चमकती हुइ मृग मरीचिका दिखाई देती है उसे स्थानिय भाषा मे झाला कहते है
आथूणी- शाम के समय चलने वाली पवने इन्हे स्थानिय भाषा मे आथणी कहते है
अर्डाव- अर्थ चिल्लाना, पश्चिमी राजस्थान मे तेज के साथ आव करती हुई स्थानिय पवनो को अर्डाव कहते है
अन्य नाम :- राज्य में उत्तर दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को धरोड़ , धराऊ , उत्तरार्द्ध के नाम से जाना जाता है ।राज्य में दक्षिण दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को लंकाऊ के नाम से जाना जाता है ।राज्य में पूर्व दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को पुरवईया , पुरवाई , पुरवा , आगुणी के नाम से जाना जाता है । राज्य में पश्चिमी दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को पच्छउ , पिछवाई , पिच्छवा , आथूणी के नाम से जाना जाता है ।


                   राजस्थान में ऋतुएं

ग्रीष्मकाल:-    

राज्य में ग्रीष्मकाल ऋतु का समय मध्य मार्च से जून तक है। यहां सबसे अधिक गर्मी मई और जून महीने में पड़ती है इस अवधि में यहां का तापमान विशेषकर पश्चिम भाग का 45 डिग्री सेल्सियस से 51 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस काल में तापमान में वृद्धि का कारण सूर्य का उत्तरायण होना अर्थात इस समय सूर्य लंबवत स्थिति में चमकता है। वायु दबाव कम एवं तापमान अधिक होना इस ऋतु की प्रमुख विशेषताएं राज्य का वार्षिक तापांतर 14 डिग्री सेल्सियस से 17 डिग्री सेल्सियस के मध्य रहता है दोपहर के समय 36 डिग्री तापक्रम रहता है तथा तीसरे पहर (दोपहर) के बाद का तापक्रम 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।

वर्षा ऋतु

इस प्रकार राजस्थान में वर्षा ऋतु जून से अक्टूबर के प्रथम तक राज्य में दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से वर्षा होती है। राज्य की सर्वाधिक वर्षा के मौसम में होती है। दक्षिणी पश्चिमी मानसून हिंद महासागर से उत्पन्न हो कर दो शाखाओं में बंगाल की खाड़ी की शाखा एवं अरब सागर की शाखा के रूप में राज्य में प्रवेश करती है राज्य को इस शाखा से केवल 57.7 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इसका कारण अरावली श्रृंखला का दक्षिण पश्चिम विशाखा के समानांतर होना है।

शीतकाल



राजस्थान में इस मौसम की अवधि नवंबर से मध्य मार्च तक है जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है।

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